आज हम आपको एक ऐसी झील के बारे में बताने जा रहे है जिसके बारे में कहा जाता है की उसमे अरबो रुपए का खजाना दफन है यह है हिमाचल प्रदेश के पहाड़ो में स्थित कमरुनाग झील।
जेब से दस, बीस, सौ, पांच सौ, और हजार का नोट निकाल कर कोई पानी में फेंकता नजर आए या फिर गहनों से लकदक सजी धजी सुहागिन अपने जेबरों को एक एक करके जिस्म से उतार कर पानी के हवाले करती दिखे तो किसी भी बहारी व्यक्ति के लिए यह आठवां आश्चर्य या फिर आखों पर विश्वास न करने जैसी बात होगी,मगर यह एक सच है, सौ फीसदी सच,जिसे कोई भी पहली आषाढ वाले दिन मंडी जिला में समुद्र तल से 9000 फीट की ऊंचाई पर स्थित कमरुनाग झील तक पहुंचकर देख सकता है जिला में बडा देव के नाम से प्रख्यात कमरुनाग मंदिर के साथ झील भी है जिसके किनारे हर साल पहली आषाढ यनि 15 जून को सरानाहुली का मेला जुटता है इस मेले में अपार जनसमूह अपनी उम्मीदों मन्नतों गठरी दिलो दिमाग पर बांध कर उमडता है निसंतान दंपतियों को संतान की चाह हो या फिर अपनों के लिए सुख शांति और सुख सुविधा की मनौती, हर श्रद्धालु के मन में कोई न कोई कामना रहती है जो इसे मीलों पैदल चढाई चढाकर इस स्थल तक पहुंचा देती है झील के चारों और पूजा करते महिला पुरषों का रेला जहां तक नजर डालें बस लोग ही नजर आएं बलि दर बलि से लाल सुर्ख होते कमरुनाग में फिर शुरु होता है भेंट चढाने का सिलसिला झील के किनारे स्थित काष्ठ निर्मित पहाडी शैली के मंदिर में बडा देव की पाषाण प्रतिमा के आगे भले ही लोग लगातार शीश नवाते रहें, मगर असली मान्यता तो उनकी झील के साथ ही है तभी तो पूजा अर्चना के बाद देवता द्वारा तय समय से एक दम आरंभ हो जाता है यह आश्चर्यजनक भेंट चढाने का सिलसिला लोग अपनी जेबों से करंसी नोट निकाल कर झील के पानी में फेंकते हैं और यह सिलसिला लगातार चलता रहता है कुछ ही घंटों में झील पर नोट ही नोट तैरते नजर आते हैं मगर जो सोना चांदी जोझील में फेंका जाता है, वह झील के गर्भ में समाता जाता है
लकड़ी से बना है पूरा मंदिर
जेब से दस, बीस, सौ, पांच सौ, और हजार का नोट निकाल कर कोई पानी में फेंकता नजर आए या फिर गहनों से लकदक सजी धजी सुहागिन अपने जेबरों को एक एक करके जिस्म से उतार कर पानी के हवाले करती दिखे तो किसी भी बहारी व्यक्ति के लिए यह आठवां आश्चर्य या फिर आखों पर विश्वास न करने जैसी बात होगी,मगर यह एक सच है, सौ फीसदी सच,जिसे कोई भी पहली आषाढ वाले दिन मंडी जिला में समुद्र तल से 9000 फीट की ऊंचाई पर स्थित कमरुनाग झील तक पहुंचकर देख सकता है जिला में बडा देव के नाम से प्रख्यात कमरुनाग मंदिर के साथ झील भी है जिसके किनारे हर साल पहली आषाढ यनि 15 जून को सरानाहुली का मेला जुटता है इस मेले में अपार जनसमूह अपनी उम्मीदों मन्नतों गठरी दिलो दिमाग पर बांध कर उमडता है निसंतान दंपतियों को संतान की चाह हो या फिर अपनों के लिए सुख शांति और सुख सुविधा की मनौती, हर श्रद्धालु के मन में कोई न कोई कामना रहती है जो इसे मीलों पैदल चढाई चढाकर इस स्थल तक पहुंचा देती है झील के चारों और पूजा करते महिला पुरषों का रेला जहां तक नजर डालें बस लोग ही नजर आएं बलि दर बलि से लाल सुर्ख होते कमरुनाग में फिर शुरु होता है भेंट चढाने का सिलसिला झील के किनारे स्थित काष्ठ निर्मित पहाडी शैली के मंदिर में बडा देव की पाषाण प्रतिमा के आगे भले ही लोग लगातार शीश नवाते रहें, मगर असली मान्यता तो उनकी झील के साथ ही है तभी तो पूजा अर्चना के बाद देवता द्वारा तय समय से एक दम आरंभ हो जाता है यह आश्चर्यजनक भेंट चढाने का सिलसिला लोग अपनी जेबों से करंसी नोट निकाल कर झील के पानी में फेंकते हैं और यह सिलसिला लगातार चलता रहता है कुछ ही घंटों में झील पर नोट ही नोट तैरते नजर आते हैं मगर जो सोना चांदी जोझील में फेंका जाता है, वह झील के गर्भ में समाता जाता है
लकड़ी से बना है पूरा मंदिर
कमरुनाग मंदिर लकड़ी से निर्मित है। परंपरा मंदिर में कमरुनाग की पत्थर की प्राचीन मूर्ति विद्यमान है। मूर्ति के पर भक्तगण श्रद्धानुसार फूल के साथ चावल चढ़ाते हैं। सदियों से यहां एक विशिष्ट परंपरा है कि लोग मनोकामना पूर्ण होने पर मूर्ति पर भेंट न चढ़ाकर झील में डाल देते हैं। इसी परंपरा के चलते इस झील में सोने-चांदी के गहने, रुपए, सिक्कों आदि का अथाह भंडार है।
झील में अपने आराध्य के नाम से भेंट चढ़ाने का भी एक शुभ समय है, जब देवता को कलेवा लगेगा अर्थात भोग लगेगा, तब ही झील में भेंट डाली जाती है। कई श्रद्धालु देव कमरुनाग को घटोत्कछ के पुत्र बर्बरीक का रूप भी मान्यता प्रदान करते हैं। इसके पीछे उनका तर्क है कि बर्बरीक भी शक्तिशाली राजा थे और उनका भी सिर काट दिया गया था। कुरुक्षेत्र में जहां महाभारत का युद्ध लड़ा गया था, आज भी वहां बड़े चाव से कमरुनाग की वीरता के किस्से सुने और सुनाए जाते हैं।
वर्षा के देव हैं कमरुनाग देव
प्रभु कमरुनाग को बड़ा देव भी कहा जाता है तथा इनकी वर्षा के देवता के रूप में भी मान्यता है। सूखे की स्थिति में लोग कुल्लू, चच्योट, मंडी, बल्ह और करसोग आदि स्थानों से यहां आकर अच्छी वर्षा के लिए पूजा-अर्चना करते हैं। हर वर्ष आषाढ़ मास के प्रथम पखवाड़े को यहां मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर देव कमरुनाग की महिमा का गुणगान करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
बताते हैं कि यह परंपरा सदियों से इसी तरह से चली आ रही है पहले लोग गहने ही चढाते थे या अपने साथ लाए चांदी के सिक्के, मगर अब करंसी भी पानी में डाल देते है लोग देवता से मन्नतें मांगते हैं और उनकी मन्नतें जब पूरी हो जाती हैं तो वह सरानाहुली के दिन यहां आकर झील में जेबर, चांदी व करंसी भेंट के रुप में फेंकते हैं उनके अनुसार लोग झील को ही देवता का असली रुप मानते हैं और इसी कारण से झील में भी भेंट चढाते हैं कई महिलाएं तो अपने शरीर के सारे जेबर उतार कर पानी में फेंक कर मन्नतें मांगती हैं व श्रंगारविहीन होकर वापस लौटती हैं गांव कुटाहची के प्रधान भी हैं बताते हैं कि कई बार रात के समय झील में गडगडाहट की आवाज आती है पानी उछलता है और उपर आकर मूर्ति के चरणों को छू जाता है ऐसे में ही लोगों की आस्था ज्यादा है कि झील ही असली देवता का स्थल है जैसे कि परंपरा चली आ रही है मेले की समाप्ति के दूसरे दिन देव कमरुनाग मंदिर कमेटी के लोग झील में लकडी डाल कर उसकी मदद से सभी नोटों को निकाल लेते हैं इन नोटों से चांदी खरीदी जाती है और फिर उस चांदी को झील में डाल दिया जाता है ऐसा इस कारण से किया जाता है ताकि लोगों की भेंट कागज की करंसी के गल जाने से व्यर्थ न चली जाए इसके बाद झील किनारे हवन किया जाता है तथा शुद्धि की जाती है सोने चांदी से अटी पडी इस झील पर चोरों की भी नजर रहती हैं ऐसे में मेले का दिन खत्म होते ही देवता के पहरेदार बंदूकें लिए इसका पहरा करते हैं झील की सफाई भी हर तीन या पांच साल के बाद की जाती है कमरुनाग की झील एक ऐसी झील है जिसके पानी पर घास जम जाता है ऐसे में जब सफाई की जानी होती है तो पहले घास को हटाना पडता है तथा सफाई करने के बाद जब तक दोबारा इस पर घास काई आदि जम नही जाती तब तक पहरा लगाया जाता है ताकि चोर पानी में घुस कर श्रद्धालुओं द्वारा भेंट के रुप में फेंका गया सोना चांदी न ले जाएं आंखों से देखें इस बार नजारामंडी करसोग मार्ग पर मंडी से 55 व सुंदरनगर से 30 किलोमीटर की दूरी पर बसा हैं रोहांडा कस्बा इसी कस्बे से सीधी 6 किलोमीटर की चढाई जो अब रास्ता चौडा बन जाने से काफी सुगम हो गई है, से इस झील तक पहुंचा जा सकता है झील में करंसी, सोना चांदी व गहने फेंके जाने का रोचक, रोमांचक व हैरतअंगेज नजारा यदि नंगी आंखों से देखना हो तो पहली आषाढ की सुबह ही यहां पहुंच जाना होगा पिछले रात को रोहांडा में भी ठहरा जा सकता है जहां पर वन विभाग का विश्राम गृह है कमरुनाग के लिए मंडी के ज्यूणी घाटी के धंग्यारा, चैलचौक, कुटाहची व चौकी आदि से भी रास्ते हैं